पैतृक संपत्ति: क्या है और कैसे संभालें?
जब घर में जमीन या मकान मिलते हैं, तो अक्सर हमें "पैतृक संपत्ति" शब्द सुनने को मिलता है। यह शब्द बस यह बताता है कि यह संपत्ति हमारे पूर्वजों से हमें मिली है, यानी विरासत में मिली हुई। कई बार हम सोचते हैं कि इस संपत्ति को कैसे इस्तेमाल करना है, क्या इसे बेच सकते हैं, या कौन-कौन से कानूनी कदम उठाने चाहिए। चलिए, बिना कोई जटिल शब्दों के, सीधे बात करते हैं।
पैतृक संपत्ति के अधिकार और उत्तराधिकार
भारत में पाइत्रिक संपत्ति पर अधिकार मुख्यतः हिंदू विवाह अधिनियम (हिंदी) और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम से निर्धारित होते हैं। दोनों में बताया गया है कि कब, कैसे और किसे कौन सा हिस्सा मिलेगा। आम तौर पर, पिता के मरने पर उनका हिस्सा उनके बेटे, बेटी और पत्नी में बाँटा जाता है। अगर कोई लिखित वसीयत नहीं है, तो कानून के हिसाब से ही बाँट होता है। यह जानना जरूरी है कि आपके पास कौन-से कानूनी दस्तावेज़ हैं—जैसे जमीन के खिताब, टैक्स रसीद या किसी भी तरह का प्रमाण—जो साबित करे कि यह संपत्ति आपके परिवार की है।
संपत्ति को सुरक्षित रखने के आसान कदम
1. **दस्तावेज़ सुरक्षित रखें** – खिताब, कर रसीद, एवं नोटरी की गवाही वाले कागजात को एक भरोसेमंद स्थान में रखें। कभी-कभी डिजिटल कॉपी भी बनाकर क्लाउड में रख सकते हैं। 2. **स्पष्ट वार्तालाप करें** – परिवार के बड़े लोगों से बात करके यह तय करें कि भविष्य में संपत्ति को कैसे बांटना है। वार्तालाप को लिखित रूप में भी ले सकते हैं ताकि बाद में कोई विवाद न हो। 3. **कानूनी सलाह लें** – यदि संपत्ति में कई हिस्सेदार हैं या जमीन का क्षेत्रफल बड़ा है, तो वकील से सलाह लेना समझदारी होगी। वह सही प्रक्रिया, जैसे नोटरीकरण या रजिस्ट्रेशन, में मदद करेगा। 4. **टैक्स और रखरखाव** – संपत्ति पर टैक्स समय पर देना और रखरखाव करना जरूरी है, नहीं तो जुर्माना या सरकारी कार्रवाई हो सकती है। 5. **बिक्री या किराए पर देना** – अगर आप संपत्ति को बेचने या किराए पर देने का सोच रहे हैं, तो सभी जुड़वाँ हिस्सेदारों की सहमति लिखित में लेनी चाहिए। इससे बाद में कोई कानूनी परेशानी नहीं होगी।
इन छोटे-छोटे कदमों से आप अपनी पाइत्रिक संपत्ति को सुरक्षित रख सकते हैं और अपने लोगन में शांति बना सकते हैं।
ध्यान रखें, पाइत्रिक संपत्ति सिर्फ कागज या जमीन नहीं है; यह आपका परिवारिक इतिहास भी है। इसे संभालने में अगर आप सक्रिय रहेंगे और सही जानकारी रखेंगे, तो भविष्य में कोई झंझट नहीं होगा। अब जब आप जानते हैं कि क्या करना है, तो अपने परिवार के साथ मिलकर एक साफ़ योजना बनाएं और आगे बढ़ें।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005: पिता की संपत्ति में बेटियों के बराबर अधिकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का असर
2005 के संशोधन ने हिंदू परिवारों में बेटियों को जन्म से सह-अधिकार (coparcenary) दिया। सुप्रीम कोर्ट के Vineeta Sharma फैसले ने साफ कर दिया कि पिता जीवित हों या नहीं, बेटी का हक बना रहेगा, बशर्ते पहले से वैध बंटवारा न हो। वसीयत से आत्म- अर्जित संपत्ति का बंटवारा बदल सकता है। प्री-1956 मौत वाले मामलों में पुराने नियम लागू होंगे। जमीन से लेकर HUF तक, हक और प्रक्रिया दोनों बदली हैं।