लखनऊ में रिटायर्ड आईएएस जितेंद्र कुमार का निधन, योगी ने शोक व्यक्त किया

लखनऊ में रिटायर्ड आईएएस जितेंद्र कुमार का निधन, योगी ने शोक व्यक्त किया
रामेश्वर गुप्ता 11 नवंबर 2025 0 टिप्पणि

रविवार, 9 नवंबर 2025 को दोपहर करीब 12 बजे, जितेंद्र कुमार का लखनऊ के पीजीआई में निधन हो गया। उत्तर प्रदेश कैडर के 1990 बैच के इस वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को प्रोस्टेट कैंसर और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर से लंबे समय तक लड़ना पड़ रहा था। उनकी मृत्यु के बाद राज्य के प्रशासनिक वर्ग में शोक की लहर दौड़ गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तुरंत शोक प्रकट किया, जबकि कई वरिष्ठ अधिकारी और राजनेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। जितेंद्र कुमार का निधन न सिर्फ एक अधिकारी के नुकसान का संकेत है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के अनुपूर्ण योगदान का भी प्रतीक है, जिसने प्रशासन के अंदर नैतिकता और दक्षता का नमूना पेश किया।

एक जिलाधिकारी, जिसने प्रतापगढ़ को बदल दिया

जितेंद्र कुमार ने अपने 35 साल के प्रशासनिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। लेकिन उनकी वास्तविक पहचान थी — प्रतापगढ़ के जिलाधिकारी के रूप में उनका काम। वहां उन्होंने बिना किसी शोर-शराबे के, बस अपनी निरंतर मेहनत से गांवों में स्वच्छता, स्कूलों में शिक्षा और रास्तों पर बिजली की लहर दौड़ा दी। राज्यसभा सदस्य प्रमोद तिवारी ने कहा, "उन्होंने जिले के विकास को योजनागत मजबूती प्रदान की।" उनके दौरान प्रतापगढ़ के 80% गांवों में बच्चों की स्कूल उपस्थिति दोगुनी हो गई। यह कोई आम उपलब्धि नहीं थी — यह एक अधिकारी की लगन का परिणाम था।

सेवानिवृत्ति के बाद भी काम जारी

जितेंद्र कुमार ने 30 जून 2025 को अपर मुख्य सचिव भाषा के पद से सेवानिवृत्ति ली। लेकिन उनकी नौकरी बंद नहीं हुई। वे अभी भी राज्य सरकार के कई विभागों के सलाहकार बने रहे। माध्यमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, नियोजन — इन सभी विभागों में उनकी राय अभी भी तलाशी में थी। एक स्रोत ने बताया, "वे ऐसे अधिकारी थे जिनके बिना कोई नीति तैयार नहीं होती थी।" उनके लिए यह नौकरी नहीं, जिम्मेदारी थी। इसीलिए जब उनकी सेहत खराब हुई, तो भी वे ऑफिस की फाइलें अपने बिस्तर पर रखे रहते थे।

लंबी लड़ाई: टाटा मेमोरियल से पीजीआई तक

जितेंद्र कुमार की बीमारी का सफर लंबा और दर्दनाक रहा। प्रोस्टेट कैंसर का इलाज टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल, मुंबई में हो रहा था, जबकि मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का इलाज पीजीआई में प्रोफेसर नारायण प्रसाद की निगरानी में चल रहा था। शुक्रवार की रात उनकी स्थिति अचानक खराब हो गई। उन्हें तुरंत पीजीआई में भर्ती कर लिया गया। डॉक्टरों ने उनके लिए अधिकतम प्रयास किए, लेकिन शरीर थक चुका था। रविवार को दोपहर 12 बजे, उनकी धड़कनें रुक गईं। उनकी मृत्यु के बाद पीजीआई के नेफ्रोलॉजी विभाग के कर्मचारियों ने चुपचाप एक फूलों की माला उनके बिस्तर पर रख दी। कोई बात नहीं की। बस एक शांत श्रद्धांजलि।

अंतिम संस्कार: एक अधिकारी की विदाई

9 नवंबर को शाम 4:30 बजे, भैंसाकुंड के अंतिम स्थान पर जितेंद्र कुमार का अंतिम संस्कार हुआ। उनके पुत्र ईशान ने मुखाग्नि दी। इस अवसर पर मुख्य सचिव एसपी गोयल, अपर मुख्य सचिव वित्त दीपक कुमार, राजस्व परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार, प्रमुख सचिव नियोजन आलोक कुमार और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। इतने अधिकारियों का एक साथ आना कम ही होता है — खासकर जब वह कोई राजनीतिक व्यक्ति न हो। यह विदाई एक अधिकारी की थी, जिसने कभी राजनीति के नाम पर अपनी नौकरी नहीं बेची।

क्यों इतना शोक? एक ऐसे अधिकारी का अंत

आज के समय में, जब अधिकारी अक्सर अपनी पदोन्नति और फायदे के लिए चलते हैं, तो जितेंद्र कुमार एक अपवाद थे। उन्होंने कभी किसी के सामने अपनी उपलब्धियां नहीं बांटीं। उनकी नीतियां बदल गईं, लेकिन उनका नैतिक दृष्टिकोण नहीं। जब उनके निधन की खबर सुनी गई, तो कई पुराने कर्मचारियों ने अपने घरों में बैठकर आंखें भर लीं। एक प्राथमिक शिक्षक ने कहा, "हमारे गांव का स्कूल उनके कारण बना। अब वह नहीं हैं — लेकिन वह स्कूल है।" इसी तरह के कहानियां उत्तर प्रदेश के दर्जनों जिलों में फैल रही हैं।

उनके बाद क्या?

जितेंद्र कुमार के बाद अब एक सवाल खड़ा होता है — क्या आज के आईएएस अधिकारी उनके जैसे बन पाएंगे? क्या हम फिर से ऐसे अधिकारी देख पाएंगे, जो बिना टीवी पर दिखे, बिना ट्वीट किए, बिना रिपोर्ट बनाए, अपना काम कर जाएं? उनकी याद अब एक चुनौती बन गई है। नौकरी नहीं, नैतिकता की नौकरी। उनकी तरह बनने के लिए कुछ नहीं चाहिए — बस एक अच्छा दिल और एक अटूट लगन।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

जितेंद्र कुमार के निधन के बाद उत्तर प्रदेश प्रशासन में क्या बदलाव हो सकता है?

जितेंद्र कुमार के निधन से राज्य के नियोजन और शिक्षा विभागों में एक खालीपन महसूस हो रहा है। वे ऐसे अधिकारी थे जिनकी सलाह के बिना कोई नीति अंतिम रूप नहीं लेती थी। अब इन विभागों में नए अधिकारियों को उनकी शैली को समझने और उसे आगे बढ़ाने का दायित्व सौंपा जाएगा। इसके लिए एक अंतर्दृष्टि रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जिसमें उनके कार्यकाल के दौरान लागू हुई नीतियों का विश्लेषण किया जाएगा।

क्या जितेंद्र कुमार के नाम पर कोई स्मृति स्थापित की जाएगी?

सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम पर एक शिक्षा केंद्र और एक वैज्ञानिक अनुसंधान फंड शुरू करने की योजना बनाई है। प्रतापगढ़ में उनके द्वारा सुधारे गए स्कूल का नाम बदलकर "जितेंद्र कुमार प्राथमिक शिक्षा केंद्र" रखा जाने की संभावना है। इसके अलावा, उनके बेटे ईशान को एक विशेष अनुदान भी दिया जाएगा, जो उनकी मां सीमा गुप्ता के लिए आर्थिक सुरक्षा का एक साधन बनेगा।

उनका इलाज क्यों पीजीआई और टाटा मेमोरियल में हो रहा था?

प्रोस्टेट कैंसर के लिए टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल देश का सबसे विश्वसनीय केंद्र है, जबकि मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर जैसी जटिल स्थिति के लिए पीजीआई का नेफ्रोलॉजी विभाग देश का अग्रणी है। जितेंद्र कुमार के लिए दोनों जगहों की विशेषज्ञता आवश्यक थी। यह एक ऐसा संयोजन था जो केवल उच्च स्तरीय अधिकारियों के लिए ही संभव होता है — लेकिन उनके लिए यह एक अधिकार की बजाय एक आवश्यकता थी।

क्या उनके निधन के बाद किसी अन्य अधिकारी को उनका पद दिया जाएगा?

अपर मुख्य सचिव भाषा का पद अभी खाली है, लेकिन इसकी भर्ती अभी तक निर्धारित नहीं हुई है। राज्य सरकार ने एक विशेष टीम को इस पद के लिए उम्मीदवारों की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है। उम्मीद है कि अगले 45 दिनों में एक नया अधिकारी नियुक्त किया जाएगा। लेकिन जितेंद्र कुमार के जैसा अनुभव और नैतिक दृष्टिकोण दुर्लभ है — इसलिए नियुक्ति बहुत सावधानी से होगी।